निखरने की दौड़ में, मैं भी निकाला जाऊंगा,
भीड़ में कहीं फ़िर, खुद से बिछड़ जाऊंगा।
अव्वल आने की ज़िद क्या मुकाम तक ले जाएगी,
इस सोच में झुंझला तो शायद मैं भी बिखर जाऊंगा।
ए खुदा सुन, ये नज़ारे दुनिया के देखने से लगता है,
इस रंगमंच के किरदार निभाते हुए ,
मैं खुद ही बदल जाऊंगा।
इस दौर में ना भेज मुझे यहीं रहने दे महफूज़,
वहाॅं आसमान तो मिलेगा पर जानता हूं,
उन कैद सी हवाओं में, मैं सांस नहीं ले पाऊंगा।
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