QUOTES ON #MYDIARY

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10 NOV 2019 AT 21:01

तुम रख लो वो निशानी हूं मैं
समंदर का गहरा पानी हूं मैं...
ख्वाबों में खोई दीवानी हूं मैं
कविताओं की अपनी जुबानी हूं मैं
तुम कर दो वो नादानी हूं मैं...
मोहब्बत सी रूहानी हूं मैं
समझ से परे अनजानी हूं मैं...
कुछ पन्नों की कहानी हूं मैं

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14 MAY 2020 AT 21:53

हवा में जब घुला ज़हर यहां मुझे महक याद आई
तुम छोड़ गए ऐसे तब तुम्हारी एहमियत याद आई

फ़ासलों ने बताया मुझे तुम कितने करीब रहे मेरे
तुम्हारी ग़ज़लें पढ़कर तुम्हारी आदमियत याद आई

सुकून और आज़ादी पाने को छोड़ा था गांव मैंने
चकाचौंध में उलझकर तुम्हारी शहरियत याद आई

तन्हाइयों ने डेरा डाला पूछने वाला नहीं कोई मुझे
गुज़रे थे तुम इस दौर से तुम्हारी ख़ैरियत याद आई

बारहां मिले मुझे भटकाने वाले नशेमन ज़माने में
तहज़ीब से छूट कर ही तुम्हारी तरबियत याद आई

ढोंग छोड़ो जो कहना है खुल कर कहो न मेरे यारों
बातों में छली गई तो तुम्हारी मासूमियत याद आई

बिछड़ कर जाने वाले हमदम तुम्हारी गुनहगार हूँ मैं
हो कर लापता खुदसे तुम्हारी शख्सियत याद आई

साथ छोड़ गए हैं सब मुझे अपना कहने वाले मेरे
यूँही नहीं 'जोयस्ती' को तुम्हारी एहमियत याद आई

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20 MAR 2021 AT 15:55

रिश्तों में कभी जंग नहीं लगती
लेकिन जंग न लग जाये के डर से
बारिश में भीगना ही नहीं
वाली सोच से
रिश्ते धूल हो जाते है
दूर तक फैले रेगिस्तान की तरह
जहाँ फिर कुछ नहीं निपजता
फिर कितनी भी बारिश क्यूँ न हो
और
रिश्तों में पसरने लगती है
ख़ामोशी की नागफ़नी
जो बींध देती है
रिश्तों के होने के मानी

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15 APR 2020 AT 1:23

मैंने बारिश में भीगना चाहा
चौक में जंगल उग आया
बारिश में क्या था ये जानना कौतूहल था
तो एहसास में भीग कर ही
प्रेम कर लिया मैंने ..
..
मुझे चाँद छूना था
रात की सीढ़ी चढ़ सफ़र पे निकली
हाथ कुछ तारे लगे
धरती पर पहुँचते ही वो जुगनू हो गए
प्रेम कल्पना है कोरी ..
..
प्रेम का हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं।

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15 MAY 2020 AT 23:16

आज भी जब .. साँझ ढलते ही बुझा दी जाती हैं
सरकारी बत्तियाँ
और मैं रोज़ की तरहा .. उसी सड़क पर अटक जाती हूँ
किसी गाड़ी में .. उसका पेट्रोल ख़त्म होने पर
देखती हूँ आस पास
दो लड़के पिछली सीट पर होते है .. मोबाइल में नज़रे गढ़ाए
ड्राइवर उतर चुका है गाड़ी से .. और जा टिका है पहाड़ी पर
तब मैं उतर जाती हूँ गाड़ी से
और खड़ी हो जाती हूँ .. खाई की मुंडेर पर
हर तरफ अँधेरा है .. रास्ता भी नहीं दिखता
दूर दूर तक कोई गाड़ी भी आती नहीं दिखती
मोबाइल का नेटवर्क भी पुराने ज़माने के कबूतरों सा है
पहाड़ों में धुंध भी उतरने लगी है .. दिल बर्फ़ की तरह जमने लगा है
ठंड गरम कपड़ों को भेद रोंगटे खड़े करती है
हवा की सांय सांय बेचैन कर देती है
और ख़ामोशी को चीरती नदियों का शोर
मुझे बुलाता है .. कि अब कोई चारा नहीं बचा
तीन जोड़ी आंखें .. तीन जोड़ी हाथ और तीन जोड़ी पैर
बढ़े तुम्हारे करीब .. उस से पहले
तुम पार करो मुंडेर और समा जाओ मुझ में
..
एक दम को सांस भर .. मैं उठाती हूँ पत्थर हाथों में
और अपनी चिंता और डर को .. फेंक देती हूँ बहती नदी में
..
इंतज़ार करती हूँ .. तुम्हारा
तुम आओगे .. ये जानती हूँ मैं।

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25 SEP 2020 AT 22:53

जब ईश्वर ने
स्त्री को रचा
कूट कूट कर भरी
उसमें सक्षमता
जब ईश्वर ने पुरुष को रचा
उसे भी हर प्रकार सक्षम बनाया
दोनों की तुलना ना हो
इसीलिए
स्त्री और पुरुष को
एक दूसरे का पूरक किया
लेकिन
पुरुष ने स्त्री की सक्षमता को
कभी नहीं स्वीकारा
स्वीकार करने का गुण
उसने क्या केवल स्त्री में भरा ??
यदि नहीं .. !! तो पुरुष की सोच
पितृसत्तात्मक या कि पुरूषवादी
कब और कैसे हो गई ??

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27 DEC 2020 AT 23:48

तुम्हारा नाम ..
बहुत अजीब है
ये ज़रा भी मेल नहीं खाता
तुम्हारी शख़्सियत से
तुम्हारा नाम ..
बहुत वाचाल .. बेहद शोखियाँ लिए
उन्मुक्त और हलचल से भरा है
और तुम ..
कोई उदास .. ख़ामोश सी तस्वीर जैसी
..
ज़िन्दगी
नाम से नहीं चलती
ना ही ज़िन्दगी का
कोई वास्ता होता है नाम से
और फिर नाम में क्या रखा है
याद किये जाने के लिए
ज़िन्दगी जीने के तरीक़े ही काफ़ी होते है
बाक़ी नाम से तो एक ढूंढों हज़ार मिलेंगे

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8 APR 2021 AT 23:05

बहुत टलती रही है
तारीख़ .. लिखने की कविता
इंतज़ार ख़त्म नहीं होता
तारीख़ों से कलेण्डर बदल जाता है
कविता को किस का इंतज़ार है
ये मुझे नहीं मालूम
लेकिन मैं ये जानती हूँ .. कविता इंतज़ार में है
तारीख़ों के बदलने से पहले से
कविता रोज़ कलेण्डर के हर पन्ने को
दस दस बार पलटती है .. और लौट आती है
शुरुआत के पन्ने पर
साल दर साल .. कलेण्डर बदलते गए
तारीखें भी
कविता लेकिन बदली नहीं
एक एक शब्द संजोया उसने
जस का तस
इंतज़ार में तारीख़ के .. लिखने की कविता
अब कह लो तो कह लो
समय के हिसाब से जो नहीं बदलते
पीछे रह जाते है .. गुमनामी के किसी अंधेरे में
कविता सुनती सब है
लेकिन इंतज़ार में है
लिखने के .. कहे जाने के
और वो मरने से पहले तो
लिखी जाएगी कही जाएगी
ये वो जानती है

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18 SEP 2019 AT 11:51

चूल्हे में पड़ी ठंडी राख़
अवशेष होंगी
आशाओं के अवसान पर
जलती हुई औरतों की
..
सदियों बाद जब
स्त्री को जानना होगा
ढूंढने होंगे नई पीढ़ी को
चूल्हें और उनकी राख़

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14 JUL 2020 AT 19:44

The agony in the silence,
The anger hiding love,
Tears rolling down my cheeks while I mutter,
The one half of me is at war with the other.
Feeling fidgety in bed at night,
Wondering, thinking, shallow and deep
Questioning my existence while my heart weeps.
The unexpressed feelings,
The pain, love, anger and fright
have teamed up again
to haunt me tonight.



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