मेरी माँ के होठों पे जब कभी हसीं खिलती है
यक़ीन मानो मुझे दुनिया बड़ी हसीन लगती है
वो जब सर पे , हाथ रखकर मुझे देती है दुवाएं
दुनिया की हर मुश्किल बड़ी आसान लगती है
और मैं जब भी जाता हूँ सफ़र पर कभी तनहा
मेरी माँ की दुवाएँ मुझको साये सी लगती है
वो आँखों की जुम्बिश से दर्द को जान लेती है
उसे औलाद को पढ़ने मैं कहाँ देर लगती है
मेरे बीमार होने पर इक पल भी नही सोती
रोता देख बच्चे को कब माँ को नींद लगती है
कभी जब आँख लगती है , माँ की गोद में मेरी
तो मानो रूह मेरी बाग़-ए-जन्नत टहलती है
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