एक अरसा हो गया है भटके हुए...
मुसाफिर को अब रास्ता नज़र आया है...
और वो जो कहते थे कि भूलना मुश्किल नहीं है हमें,
उन्हें आज फिर हमारा ख्याल आया है...
किसी की बेरुखी को हम यूं दिल से नहीं लगाते...
यूं अपनों से भी क्या कभी नाराज हुआ जाता है...
और क्या भूल गए हो किए अहसानों को हमारे...
खैर हमें कौन सा कभी तुम्हारा ख्याल आया है...
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