ठहर जाओ कुछ वक़्त और...
उस वक़्त के लिए,
वो ख़ुशियों की गूंज भी होगी,
जगमगाता शहर का मंज़र भी होगा।
पाला है जिन पुराने दरख़्तों ने..
हमें अपनी छाव में,
उनकी ख़ुशी,उनकी सेहत का,
और भी ख़्याल रखना होगा।
शुक़्रगुज़ार हो उन हाथों के..
रूके नहीं जो हमें महफ़ूज़ रखने को,
निभाकर फर्ज़ ज़िम्मेदारी से,
साथ मिलकर हमें लड़ना होगा।
समझदारी से बनाए गए..
कायदे और उसूलों पर चलें,
अपने मुल्क़ को हमें ही,
इस परेशानी से निकालना होगा।
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