शाम की लाली, रात का काजल सुबह की खूबसूरत तक़दीर हो तुम हो चलता फिरता ताजमहल सांसें लेता कश्मीर हो तुम हूँ तुम्हारी पनाहों में ही ज़िंदा मेरे फ़क़त इश्क़ का मुख़बिर हो तुम
फलक पे सितारों ने हसीन जाल कोई बिछाया है बादलों को मुखबिर और चंदा को दुल्हन की तरह सजाया है ताकि तुम दुनियादारी भूल, उसके तिलस्म में खो जाओ ज़मीनी रिश्तों को छोड़ , उसकी आग़ोश में सो जाओ
उर्दू एक ऐसी ज़ुबान है अहले वतन जिसे तुम हिन्दुस्तानी ज़ुबां बोलते हो यह गैर मुल्कों की जुबां नहीं मेरे हिन्दुस्तान कि जुबां है उर्दू उर्दू से ही हमारी सकाफत है तो उर्दू से हमारी इज्जत है दोस्त कैसे कहूं गैर मुल्की जुबां है उर्दू इसी जुबां ने पहचान दी प्रेम चंद को जो लोग मुखबिर थे अंग्रेज़ों के वो आज उर्दू के मुखालिफ ठहरे हैं कभी इसे दकनी कभी रेख़्ता तो कभी इसे हिन्दवी ज़ुबां बोला गया जो लोग उर्दू से किया करते हैं नफरत सुनो प्यार व मुहब्बत की ज़ुबां है उर्दू इजहार अगर करते हो उर्दू से मुहब्बत तो सलीका ए उर्दू पेश करना ना भूलो