ये हर्फ-हर्फ मुझको अक़ील कर रही है। जमाने की बेरुखी को जलील कर रही है। और क्यूं ना हो मोहब्बत मुझको मेरी कलम से। ये मेरी मुफलिसी को शोहरतों में तब्दील कर रही है।
न्यूज रिपोर्टर बेरोज़गार दिवस पर चुप क्यों है? हाँ अमिताभ, कंगना, रिया थोड़ी ना है कब पानी पिया,खाना खाया,बैचैनी हुई, डर गयी अरे वो तो बेरोज़गार है उस पर कौन बोलेगा?
"शायद न पहुँच पाऊं उस मंज़िल पर जिस मंज़िल के ख़्वाब पाले हैं मैंने न किस्मत का धनी हूं न ख़ुदा का रहम है अब तक मुफलिसी में ही तो दिन काटे हैं मैंने कुछ अल्फाज़ो का लेकर साथ अपनी बेरूखी को भर लेता हूं अपने ज़िंदगी के पल अपनी गज़ल, गीत, कविता, कहानीयों से भररखे हैं मैंने"