🍂 फ़कीर 🍂
कितने ही पहर यूं सरकते गए,
वह कहता रहा, मैं सुनती रही।
शब्दों में न जाने क्या जादू था,
मैं मन की टोकरी बुनती रही।
एहसास हुआ न तनिक मुझको,
कुछ कहना मुझे भी रहा होगा।
मैं थी भाव विभोर उन बातों में,
क्या क्या ना उसने कहा होगा।
मन मेरा बहुत ही विचलित था,
पर उन शब्दों में आराम मिला।
वो फकीर था आखिर मंदिर का,
जिससे ये सुकून का दान मिला।
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