शायद मेरे इश्क़ को भी,
मोरपंख सा बनाया है उसने
ना जाने कितने रंगों से,
अरमानों को सजाया है उसने-
जब उतरना जमीं पर तो बता देना,
चाँद जमीं पर रोज नहीं उतरता है
ओ रे कान्हा बता देना एक बार
क्योंकि पता न होना बहुत अखरता है।-
Thaam le mujhko is mohke
saagar se,
Ubaar le mujhe is mohke
bandan se,
Ujaagar karde prem
ki raah,
Saawre na kabhi ho
tujhse virah.
-overthinking.with.saanchi-
मोरें भी नचने लगें, जब तू मुरली बांचे,
ओ बंसी बजैया,
मोरे कन्हैया।
एक बार वो रास दिखा दे, जब गोपिन भी नाचें,
ओ रास रचैया,
मोरे कन्हैया।
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ओ रे कान्हा तेरे सिवा, कहो किससे प्यार करूँ मैं,
ये दिल तो तेरा है और तेरा दीवाना भी,
कान्हा तुम ही हो आराध्य मेरे, किसको और जपूं मैं,
मेरे पास कुछ नहीं सिवा तेरे, तू मेरा खजाना भी,-
कि मिलूं एक बार उस मोरपंख वाले से,
और पूछूं कि तूने जिंदगी के हर मोड़ पर
अपना सब कुछ खोया.....
बता फिर कैसे तु हर बार मुस्कुराया....-
ओ मेरे मुरलीधर, ओ मोरमुकुट धारी,
कितनी अच्छी बातें तेरी, कितनी प्यारी प्यारी
ओ रे कान्हा!ओ रे कान्हा!
तू मुक्ति आधार है,
तू जीवन के सार है,
तुम जग विश्वास हो,
तुम ही मेरी श्वास् हो,
ओ रे कान्हा!ओ रे कान्हा!-
ये मोरपंख इतना भी सुंदर ना होता ,
कान्हा! अगर ये तेरे सर पर ना होता..!!-
ओ रे कान्हा!!!
एक बार वो रूप दिखा दे,जिस पर जग मोहित है।
नाम पड़ा मुरलीधर, मोर मुकुट सुशोभित है।।
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