एक कप चाय की तलब अब भी है मुझे
बस तेरी चाहतों से अब परहेज करता हूं।
तुम्हें चाहते हैं चाहते रहेंगे उम्र भर
मैं ख्यालों से थोड़ी लबरेज रहता हूं मैं
तुम आखिरी या पहले तुम्हीं रहे हो
गुजरे दौर का गुरेज करता हूँ मैं
मैं इश्क का एक अनोखा ख्याल हूं
चाहता तुम्हें और तुम्हीं से मतभेद करता हूँ मैं
बड़े तसव्वुर से लिखता पढ़ता हूं तुम्हें मैं
ता-उम्र इश्क का अपना सिलसिला लिख रहा हूँ
मोहब्बत का सिलसिला यूँही रहेगा एक दौर का
फासला कोई भी हो दिल्लगी छोड़ नहीं सकता
हमराज हो तुम मेरे दिल के तुम्हें पता है सब
इश्क की दास्ताँ मे तेरा नाम लेते हैं हम
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