अच्छा लगा, जो याद दिलाया गुज़रा ज़माना
कुछ मुझे याद करना, कुछ मुझे याद दिलाना।
वो मेरी उंगलियों का तेरी उंगलियों में उलझना,
तेरी उलझी जुल्फों में, अरमानों का सुलझना,
हर्फ दर हर्फ तेरी पीठ पर हाथों से दिल बनाना,
गरम सांसों में, अपने एहसासों का सुलगना।
वो रुखसार पर तेरे मेरे इश्क़ की लाली थी,
गुलाब सरीखे अधरॊ से, मेरे अधरॊ को मिलाना।
अच्छा लगा जो याद दिलाया..................
बारिश के मौसम में भी हम जल जल रहे थे,
अरमान दिल के हद से ज्यादा मचल रहे थे।
तेरा भीगता बदन तुझे उर्वशी बना रहा था,
हम दिल को थाम जाने कैसे सम्भल रहे थे।
मेरे अक्स में छपा है, टूट कर बिखर जाना,
मेरी जीत बनकर तेरा यों खुद को हार जाना।
अच्छा लगा, जो याद दिलाया..................
अब भी उस कसक को में पास रखता हूं,
सीराहने तेरी यादों के, लिहाफ रखता हूं।
बेचैनियों का मुझसे आलम ना पुछ मेरी जां,
तेरे बगैर, दर्द में डूबे, अपने ख्वाब रखता हूं।
टकराएं कभी तो, जरा सा बस मुस्कुरा देना,
ना नज़रें तुम झुकाना, ना नज़रें तुम चुराना।
अच्छा लगा, जो याद दिलाया...................
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