पल
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एक पल, क्या वास्तव में सिर्फ़ एक पल है ?
या सैकड़ों पलों की निरंतर चलती, बदलती सुनामी है
हम जब इन पलों में इन पंक्तियों को बुन रहे हैं
ना जाने इन पलों में क्या - क्या घटित हो रहा होगा
कोई मृत्यु के द्वार पे होगा, कहीं नवीन जीवन का आरंभ होगा
कोई सोता होगा इत्मीनान से, कोई सोने की जगह खोजता होगा
कोई प्रेम की मिठास में रंगा होगा, कहीं किसी का चीर हरण होगा
कहीं बजती होगी शहनाई, कहीं टूटते होंगे सात फेरों के रिश्ते
किसी ने थाली में छोड़ा होगा भोजन, कोई भूख से रोया होगा
कोई लौटता होगा ऑफिस से, कोई अपराध में संलिप्त होगा
ना जाने कितने विरोधाभासों से भरा ये पल
किसी पर भारी और किसी का सुकूं होगा
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