मोह है निहित इतना कि तब क्या होगा,
बस होगा कुछ अधूरा तो कुछ पूरा होगा,
एकटक देखते हुए कमल को एहसास होता है,
के मुरझाना भी है सुंदर तो खिलना क्या होगा,
कह देते है हास्य में वो विस्मय को मुक्ति,
मगर तय नियति को जानना क्या होगा,
न रहेगी पिपासा कोई और नाही क्षुधा लोभ की,
ऐसी निर्मल अवस्था में मानो ठहरना क्या होगा,
घटित हुई घटना का कुछ पता भी न होगा,
बस होगा कुछ अधूरा तो कुछ पूरा होगा।
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