मोहब्बत न होती तो कुछ भी न होता
जहाँ में कोई बोल भाला न होता
बशर कोई अदना आला न होता ।
अंधेरा न होता उजाला न होता
न हुस्न हरजाई बेताब होता
गुणों का न कोई तमनाई होता ।
न ये सोज होता , न ये साज होता
मोहब्बत खुदा का न इकराज होता
निराला न उलफत का अंदाज होता
किसी को किसी पर न नाज होता ।
न दिलकश अदा हुस्न वालों की भाती
न दुनिया कभी प्यार के गीत गाती
न आखों में सुरत किसीकी समाती
न बिछड़ो हुओं कि कभी याद आती ।
मोहब्बत ने बंदे को सजदा कराया
मोहब्बत ने कतरो को दरिया बताया
मोहब्बत ने दोनों को जहाँ से कराया
मोहब्बत ने बंदे को रब से मिलाया ।
इसी के लिए इश्क पैदा हुआ है
खुदा की कसम खुदा कह रहा है ।
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