कल ही कल में भटके
कहां आज को हम जी पाते हैं
एक आत्मा, एक शरीर
कौन से यहां कोई नाते हैं,
वो बैठा ऊपर सौंप किसीको
समझदारी पर इतराता है
एक खिलौना ढहा तो क्या
कौनसा उसका कुछ जाता है,
वो मस्त है अपनी दुनिया में
एक दुनिया को कर आबाद
कौन जीता है, कौन मारता है
कौन होता है बर्बाद,
एहसासों का मेला देकर
गुम वो कहीं हो जाता है
अरमानों की लाशों को फिर
क्यूं आग देने आता है??
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