लोगों को मेरी बातें कड़वी लगने लगी हैं,
मगर सच लिखने की तो हमें आदत हो चुकी है...
लोगों को मेरे शब्द विपरीत लगने लगे हैं,
मगर छाती ठोक कर बोलने की आदत हो चुकी है...
झुकाने वालो की लंबी कतार लगने लगी है,
मगर सीना तानकर चलने की आदत हो चुकी है...
राहों में काँटों की बौछार होने लगी है,
मगर कदम न रोकने की आदत हो चुकी है...
दुनिया को हम अब पागल लगने लगे हैं,
मगर दुनिया से नहीं डरने की आदत हो चुकी है...
भले ही हम अब दुनिया को ग़लत लगने लगे हैं,
मगर सबका मुँह बन्द करने की आदत हो चुकी है...
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