औरत
एक मिट्टी का लौंदा,भरा हुआ सोने से,
लुढका,भाग्यवश गिरा, तुम्हारे पैरों के पास
प्रस्तुत था हर रूप में ढलने को,
तुमने ढ़ाला उसे कठपुतली के सांचे में
खींचकर फेंके सारे गहने,
और रख लिया मूक अभिनय हेतु,
अपनी ढाल बनाकर
आवरण दिया गरीबी,बेबसी, लाचारी का
ताकि लगातार,अपने लांछन भरे गंदे हाथ पोंछते रहो इससे
छटपटाहट की हद तक कस गया है,
गले में यह आवरण
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