किसी का कत्ल करने को, आंखो का काज़ल ही काफी है
उस पर ये गालों को चूमता झुमका, ग़ज़ब की नाइंसाफी है
चल पड़े वो जिस भी सम्त, बहारें भी साथ चलती हैं
खिल उठे सब फूलों की, खिज़ा से वादाखिलाफ़ी है
कभी जो देख लो उसको, तुम्हारी नज़रें ही टिक जाएं
उसे आंखों में भर लेना, महज़ इक झलक नाकाफी है
दिल हार बैठा हर शख्स, राब्ता जिससे भी हुआ उसका
ग़ज़ल में कुछ भी नहीं "निहार", बस उसकी तस्वीर छापी है
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