QUOTES ON #MEIAURMERIKALAM

#meiaurmerikalam quotes

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14 SEP 2017 AT 12:04

एक आकुल सी,
थोड़ी आक्लन्त सी,
स्त्री के आक्रन्दन ने,
भौहें तना दी वक्र सी,
बांधा मुझे प्रश्नों के साँखल में,
चित्त डूबा था नैराश्य सागर में,

(पूरी कविता पढ़िए अनुशीर्षक में 👇👇👇)

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26 APR 2018 AT 19:21

चाह कर भी पहुँच नहीं पाते,
अपने अंतिम लक्ष्य तक,

घोंट लेते है अरमानो को,
अपनो की ख़ुशी के फंदे से,

कर लेते है ख़ुदख़ुशी,
फंदे पर झूल जाते है...
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“मेरे अधूरे ख़्वाब”

Saurabharshita

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17 JUL 2018 AT 19:21

फ़क़त, ज़हर जिनके कानो में है,
ऐसे वैसो की जगह पीक़दानो में है

ज़रा सा हुनर, क्या बक्शा ख़ुदा ने,
भाव ग़ुरूर का अब आसमानो में है

ग़लीच बनी सोच, लिबासों में इस क़दर,
क्या, आबरू लिबास की दुकानो में है ?

जागीर नहीं ये मुल्क, किसी परिवार का,
फिर क्यूँ सियासत, यहाँ खानदानो में है ?

सकून मिल जाता, लोगों की मोहब्बत से,
यूँ महफ़िल लूटने का ख़िताब,नादानो में है

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16 MAY 2018 AT 19:33

पलट दे रूख आँधी का दुआ माँ की,
किनारा लगे कश्ती का दुआ माँ की

रोशन हो चिराग़ अंधेरे के दम पर,
साथ बना रहे बाती का दुआ माँ की

लौटते नहीं फ़क़ीर हाथ ख़ाली जहाँ,
वास ना हो कंगाली का दुआ माँ की

ताउम्र सम्भाले गुलिस्ताँ गुलाबों के,
ना निकले लहू माली का दुआ माँ की

ना तेरी, ना मेरी, इबादत है सबकी,
शब्द ना बने गाली का दुआ माँ की

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12 MAY 2018 AT 20:09

चंद्र बिंदु “माँ” का ज़रा “सास” में लगा दीजिए,
वृद्धाश्रमो का “साँस” लेना मुश्किल हो जाएगा

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11 MAY 2018 AT 20:20




“अन्दाज़ ए बयाँ” मेरा तल्खियत भरा है,
छोड़ो यारों, खामखां तबियत ख़फ़ा है .....

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22 MAR 2018 AT 19:36


ले ली है तलाशी आज अपने ज़ेहन की,
ख़ुद को कुत्ते की तरह सूँघना लाज़मी है

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9 JUN 2021 AT 9:01

आज फिर माँ के गोद में सोकर खूब रोने को मन किया
फिरसे मुझे उस बचपन के उपवन में खोने को मन किया,काश मैं फिर उसी लम्हों से मिल पाती
काश मैं फिर तितली के पीछे पीछे चल सकती
मैं, कागज के नाव कुछ आज भी संभाले रखी हूं
काश रस्सी में नाव बांध बाल्टी के पानी में उसे खींच पाती ,सूखे रेत को भिगो कर बना मेरा भव्य मंदिर ;किधर गया ? शायद भाई ने आकर मेरे मंदिर को तोड़ दिया, देखी दूर प्यारा बना था भाई का मंदिर रेत से
सजी थी उस पर फूल ,पत्ते ,छलका मेरे आंखों से अश्रु बूंद, तेज पर उदास मन जाकर पापा से शिकायत करने लगी,पापा भी कितने भोले मेरे फिर से मन्दिर बनाने चले ;मुझे जाना है उस असीम सरलता के अंक में
मुझे फिर अपना लो निस्वार्थ मन,मुझे अपना बना लो
जीना चाहूं तो निस्वार्थ होकर,वरना मृत्य मुझे स्वीकार लो!!

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23 APR 2018 AT 19:44

आना जाना तो किराए के मकान पर लगा है
दाँव ज़िंदगी का नए मेहमान पर लगा है

संभाल कर रखो क़त्ल के औज़ार तुम,
इल्ज़ाम क़त्ल का मेरी ज़ुबान पर लगा है

सहेजता कितने ही सितारे, अपने दामन में,
दाग़ टूटे सितारों का ,आसमान पर लगा है

ताउम्र बीत गई ,गुलिस्ताँ सम्भाले सम्भाले
निशाना तो ख़ारों का बाग़बान पर लगा है

कभी बेमतलब भी गले मिला करो यारो,
लगता है ये रिवाज तो रमज़ान पर लगा है

वाक़िफ़ हूँ यहाँ कितनी ही ज़िंदा लाशों से,
फिर क्यूँ मुर्दों का हुजूम श्मशान पर लगा है

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14 MAY 2018 AT 19:39

माँ की परवरिश तेरे क़िस्से में रहती है
पूजा के लिए मोहब्बत परदे में रहती है

बदल जाए ज़माना, तुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता,
सुना है, ये शराफ़त तेरे हिस्से में रहती है

यूँ तो लाखों तारे है,यहाँ रोशनी के लिए,
पर तेरे जैसी चमक ध्रुव तारे में रहती है

रूह को सकूँ दे, ऐसे जज़्बात सुना दे,
फ़क़ीरा तेरी आवाज़ ज़माने में रहती है

जब तुझे पढ़ती हूँ, क़बीरा याद आता है,
ऐसी फ़क़ीरी ख़ुदा के दीवाने में रहती है

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