क्या गलत है ,क्या सही
जहाँ तू , मैं वहीं
बस तेरे पास नहीं
मन से तेरे साथ रही ।
बनकर तेरी परछाई
या फिर हुँ तुझमे समाई ।
शायद गलत है ये वक़्त
जो एक रिश्ते को हमने आज़माया ।
हज़ारो ज़ख़्म होते हुए भी
इस दिल ने तुझे अपनाया ।
क्या पाया क्या खोया
यह प्यार तो खुदगर्ज नहीं ।
संग रहने कि ख्वाहिश में
क्या गलत क्या सही
जहाँ तू , मैं वहीं
बस तेरे पास नहीं ।
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