शब्दो को पढ़ कर अर्थ तो लाखो समझ जाएंगे, कुछ तो खुद को उन शब्दो से जोड़ कर भी देख पाएंगे, और कुछ को समझ ही नहीं आएंगे, कुछ तिल का ताड़ बनाएंगे, पर इनमे छिपी भावनाये , उस वक़्त के ख्याल, सिर्फ लिखने वाले के ज़हन मे ही रह जाएंगे |
जिश्मानी थी जब तक महौब्बत वो खूब निभाते रहे पर्दा रखा दिल पे बाकि सब दिखाते रहे मैंने जब भी कहा उनसे एक बंधन में बंध जाये चलो हर बार इंकार का नया कोई बहाना बनाते रहे छुलु,चुमू बाँहों में भर लूँ एतराज़ तब तक कुछ भी ना था अपनी औकात से ज्यादा खर्चे जब तक उठाते रहे
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