हैवानों की बस्ती में जन्मी मैं एक बेमोल परिंदा हूं
कहते है सब मुझे वैश्या, हाँ करती मैं धंधा हूं
बहुत से नाम दिए लोगो ने बदचलन,आवारा,कुकर्मी कहा
फ़िर भी मुस्कुराकर मैंने हर गम को चुपचाप सहा
सुनी हथेली सुनी मांग फिर भी मैं सेज सजाती हूं
रोज़ लगती है मेरी बोली रोज़ ही नोची जाती हूं
आसुंओ को छिपाकर चहरे पर मुस्कान सजाए बैठी हूं
अपने जिस्म के हर हिस्सों का दाम लगाये बैठी हूं
नारी शक्ति का नारा लगाते उनके हक में लड़ते है
रात के अंधेरे में वो भी आते कुछ ऐसे भी दरिंदे है
मेरी कोख से भी एक नन्ही सी कली ने जन्म लिया
इन हवसियो के डर से अपनी ममता को भी मैंने मौन किया
थी मेरी भी हस्ती प्यारी मैने भी सपने संजोए थे
अपनो ने ही छल करके खत्म कर दिए मेरे किस्से थे
इस बस्ती से दूर पली जो वो भी क्या सुरक्षित है
अपने ही बेआबरू करते वो भी कहां इससे वंचित है
चुपचाप होकर सहते रहती कुछ सहम कर मर जाती है
क्यों वो लड़की में जन्मी इस बात पे भी पछताती है
इन चीज़ों को देख है लगता मैं अनमोल परिंदा हूं
हां हूं मैं वैश्या,है फक्र मुझे करती मैं धंधा हूं!
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