हर घर ,दर-ब-दर है भटका 'मस्ताना' ,
तेरे इश्क़ में बेख़बर है फ़िरता दीवाना |
कोई कहता है पागल, कोई कहता सयाना ,
फ़रेबी ये दुनिया है , नोचे ज़माना |
ज़ालिम ज़माने को मुह क्यों लगाना ,
बस इश्क़ में तेरे है खुद को लुटाना ,
बस इश्क़ में तेरे है खुद को भुलाना ||
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