कल तलक जो साथ थे आज वो ख़्वाब हो गए,
बेदर्द ज़िन्दगी में शामिल कुछ और अज़ाब हो गए।।
गम -ए- हयात में फ़ुर्सत ही नहीं मिली ख़ुद के लिए,
खुशियाँ भूलाकर ग़मों में मसरूफ़ बेहिसाब हो गए।।
आदत में शुमार हुआ करता था बेवज़ह चहकना,
टूटकर अब ख़ामोशियों में भी एक ज़वाब हो गए।।
गले लगा कर अतीत को इक दिन यूँ रोये बेहिसाब,
ख़ुद की ही ख़ुशी के ख़ातिर हम इंक़लाब हो गए।।
कभी सितारों से टूट जाया करते थे बात - बात पर,
अब रोशनी से लबरेज़ नूर - ए - आफ़ताब हो गए।।
बा - चश्म - ए - तर एक नक़ाब ओढ़ रखा था हमने,
चेहरे पर तबस्सुम बिखेर अब हम बेनक़ाब हो गए।।
भीगकर थक गई थी “फ़लक" ये मासूम पलकें बेचारी,
आख़िरकार मसरूर होने में हम भी क़ामयाब हो गए।।
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