क्या हुआ अगर लोग आज मास्क पहने घूम रहे हैं,
कल भी तो असली चेहरा नजर नहीं आता था लोगों का।
पहले चेहरे पर सद्भाव दिखा कर सीने में खंजर चुभोते थे,
नकाब ओढ़कर आज, कुछ उद्धार तो कर रहे लोगों का।
उनकी मनमानी थी कि औरतें पर्दे में ही रहें तो अच्छा है,
वक़्त का मिजाज देखो साहब, आज खुद ही नकाबपोश हैं।
घुटन तो बेशक होती होगी, इस नकाब में २४ घंटे रहने से,
वक़्त मिले तो सोचना, के औरतें पीढ़ियों से कैसे जी रही थी।
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