QUOTES ON #MARGIN

#margin quotes

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5 JUL 2017 AT 20:31

The small margin between

"Then and Now"

Tells ur entire story

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21 JUL 2017 AT 13:46

ख़ुद में और कितना सूलझूं,

कि तुझमे उलझ कर रह जाऊँ......

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29 JAN 2019 AT 15:16

#हाशिया

अपनी पूंजी पर जो अकड़ेंगे
वो आज नहीं तो कल, हाशिये पर चले जाएंगे!!

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29 JAN 2019 AT 23:38

मैं कागज़ के हाशिये पर मिलूँगा तुम्हें
जब तुम्हारे पास लफ्ज़ तो होंगे
पर लिखने को जगह नहीं होगी,
तब थोड़ा मुझ पर लिख लेना
ज़रा करीब-करीब रख देना,
हम दोनों को
तब शायद ये कहानी मुक़म्मल होगी!

मैं किनारे पर मिलूँगा तुम्हें
किसी हाशिये की तरह,
जब ज़िन्दगी में तैर कर तुम थक चुकी होगी,
तब रुक कर मेरी बाहों में
तुम सुकून से सो लेना,
तब शायद बेबसी इन लहरों की शांत होगी!

मैं तुम्हारे ही पल्लू के
हाशिये पर बुना रहूँगा,
सरक कर धीरे-धीरे तुम्हारे चेहरे पर रुकूँगा,
तुम भी होठों से दबा लेना वो परदा शर्म का
लबों के बीच छुपा लेना मेरा हर धागा इश्क़ का,
महफ़िल में लिहाज के बहाने
तुम मुझमें खुद को खो देना
तब शायद बेचैनी इन साँसों की कम होगी!

मैं ज़िन्दगी के हाशिये पर
इन्तज़ार की राहों में दिखूँगा तुम्हें,
तुम भी जब उसी रास्ते मिलोगी
तब शायद ज़िन्दगी में हर इबादत पूरी होगी!

#PoolofPoems

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29 JAN 2019 AT 15:30

#मेरेहाइकु

उस गली में
ग़रीब की किवाड़
यही हाशिया!

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29 JAN 2019 AT 14:01

स्कूल लाइफ में हाशिया इम्पोर्टेन्ट सवालों को मार्क करने के लिए होती थी..
लेकिन कॉलेज लाइफ में हाशिया या तो दोस्तों के प्यार के किस्सों को दर्शाता है..या तो जिगरी दोस्तों के बेकार जोक्स से भरे हुए रहते है।।
लेकिन स्कूल हो या कॉलेज..
मेरा बुक का हाशिया मेरे सपने के लिए प्यार को दर्शाता है!!

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20 AUG 2017 AT 1:13

बुझे घर के चिराग, तो रोई राप्ती भी
आंसू नहीं, सिर्फ तबाही लाएगी,
कोई सुने इसकी आपबीती भी......

अपने मासूम बच्चों की चौखट पर जलती लाश देखी,
नज़रे फेर अपनों की ओर,
आँखों में लिए न्याय की तलाश देखी......

न्याय न मिला अश्क़ो को भी,
सियासत मिली अपनों से,
छीन लिया इस राजनीति ने लालों को,
माँ की ममता के सपनों से....

माँ का दामन छोड़ने वाले नेता कहाँ रह गए
न मालूम आँचल में खेलने वाले,
आँचल से कब खेल गये....

तलाश रही है माँ अपने बेटों को,
इस शहर के हर कोने में,
सुकून नहीं है लहरों के एहसासों को
अब बंदिशों में रोने में......

बुझे घर के चिराग़, तो रोई राप्ती भी

                                   -राप्ती

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2 AUG 2021 AT 23:02

मेरे जीवन-पृष्ठ पर टेढ़े-मेढ़े अक्षरों से,  
तितर-बितर लिखावट में, लिखी थी एक अजीब-सी रचना… 
उस पृष्ठ का तुम ही हाशिया हो…
हाशिया हो तो भी तुम उपेक्षित नहीं हो  
क्योंकि कैसे समझता मैं अपने ही हाथों लिखी वो रचना,
यदि पृष्ठ पर हाशिया ना छोड़ा होता?
हाशिया हो तुम,
तभी तो मेरे जीवन-पृष्ठ पर संतुलन बनाए रखती हो,
थकी हुई आँखों को राहत पहुँचाती हो  
एक अजीब-सा सुकून दे जाती हो तुम, मेरी हाशिया…
मेरी रचना में कुछ ख़ास छूट भी जाए,
और उसे लिखने लायक कोई जगह ना हो, 
हाशिया ही प्रस्तुत रहता है तब  
अपनी सम्पूर्ण हस्ती मेरी रचना को समर्पित किए…
कभी सोच भी नहीं सकता कोई बिना हाशिये के एक पृष्ठ… 
तो मैं कैसे सोच लूँ – तुम्हारे बिना मेरा जीवन-पृष्ठ??

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14 JUN 2020 AT 20:48

As children we were taught
that everything that we do on paper
should stay inside the margins
that they would have kept drawn for us.
Because they won't like us
to make it messy, outside the margin.
And slowly as we grew,
we deep-rooted this into ourselves.
Now that life itself looks like a sheet of paper that's almost filled,
we search for little spaces,
and tiny blank corners
to vent out everything
that makes us want to scribble colossally.
But we do this only inside the margin
that they've drawn for us.
We struggle, we suffocate,
we strangle and we smother ourselves,
just to fit inside that margin.
Because they won't like us
to make it messy, outside the margin.

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29 JAN 2019 AT 15:55

हासिये से गुजरती जिंदगी में एक एक पल कि कीमत तो देखिए ज़नाब,
जिंदगी जीने की हसरत मजबूत होती है और मौत तिनका तिनका छीन लेती है.....

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