कब तक इस दुनिया से छुप कर
यूं ही हम मिलने आयेंगे ,
हैं जमाने के उसूल बडे , क्या हमारे
छोटे से दिल की पुकार ये सुन पायेंगे ,
होंगे कई मंथन जात- पात , ऊंच -नीच ,
भेद भाव के ,
क्या ये पंचायतें हमारे प्रेम का मंथन कर पायेगीं,
क्या ये समाज देगा कोई पवित्र स्थान ,
कोई नाम हमारे रिश्ते को ,
या फिर से एक प्रेमी जोडे को लहुलुहान ये कर जायेंगे ...
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