मेरे प्रिय लेखकों,
मैं किसान पुत्र सदा ही अपने माता-पिता का आभारी रहूंगा। मेरे अस्तित्व का निर्माण मेरे माता-पिता के पैरों के नीचे जमी धूल से हुआ है। अब तक मेरा सफर जारी है। इस सफर में अपने हृदय में छिपी कला शैली का आह्वान कर रहा हूं ,मेरे ह्रदय की हर चीख अत्यंत ऊंचे स्वर में पुकार पुकार कह रही है, "पुत्र तुम्हारे ह्रदय में छिपी कला शैली न केवल तुम्हें प्राप्त होगी अपितु उसे आप सारे संसार के समक्ष ला सकोगे" ए पुकार हृदय कि नहीं अपितु मेरे मां की है।भगवान शिव की महान कृपा होगी तो मैं अपने आपको माता पिता के पैर की धूल के सामान बन पाऊं तो यह मेरा सौभाग्य होगा शिव जी का आशीर्वाद होगा।।
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