"पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!"
किसको सुनाता मैं, या किसे बतलाता,
अपने डर को दूर कर, कैसे उलझे रिश्ते सुलझाता,
पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!
बचपन में मेरे, माँ की महिला मित्र घर आती थी,
गले लग अनचाहे स्पर्श दे जाती थी, माँ को देता सब बता,
पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!
नहीं लगता था अच्छा, अपने शरीर पर उनके हाथ,
कमरे में दुबक, कोनों में आँसू के निशान छोड़ था जाता,
पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!
पड़ोस के अंकल घर आ, अनचाहा प्यार दिखाते थे,
सहमे मन से, घर पर हर बार सब सच देता था बता,
पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!
दोस्तों को बताया, तो उन्होंने कहा की फायदा तू उठा,
पर खुद की इज्जत बचाने का नही है दूजा कोई रास्ता?
पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!
क्या मेरे अंग, अंग नही? क्या मेरी इज्जत नही है इज्जत?
पुरुष प्रधान देश में, मैं भी हूँ असुरक्षित ये हूँ मैं बताता,
पर तू तो लड़का है, बस यही हर बार सुन जाता!
लड़का हो या लड़की, अनचाहे स्पर्श किसी को नही पसंद,
इज्जत दोनों की है बराबर, लड़का होने का न मुझे है कोई घमंड,
हाँ! मैं लड़का हूँ, पर मेरी ना भी है "ना"!
-