'इश्क का रोग'
पल भर की मुलाकात कभी जो, होती महज संयोग.
दे देती है कभी-कभी किसी को, जीवन भर का रोग.
जीवन भर का रोग, छूटना जिसका मुश्किल.
तिल-तिल कर के मारे, है ये शातिर कातिल.
है ये शातिर कातिल, न कोई चेहरा पहचाने.
कब किधर से आए, रास्ता तक कोई न जाने.
रास्ता तक कोई न जाने, फिर क्या करे उपाय?
कहाँ छिपाए खुद को, किसकी शरण में जाए?
किसकी शरण में जाए? कि यह रोग है भारी.
तन्हाइयों से, ख्वाबों से, इसकी सबसे ही यारी.
इसकी सबसे ही यारी, दवा कहीं मिल न पाये.
ओझा, मौलवी, जंतर- मंतर; कुछ काम न आए.
कुछ काम न आए, है यह रोग ही ऐसा.
लगे तो न छूटे, फूँको कितना ही पैसा.
फूँको कितना ही पैसा, या डॉक्टर बुलाओ.
रहो चाहे घर में या फिर, हॉस्पिटल जाओ.
हॉस्पिटल जाओ, या फिर बैठो मधुशाला.
इसकी नहीं दवा , पीयो कितना भी हाला.
पीयो कितना भी हाला, या उसमें डूब ही जाओ .
मिले नहीं छुटकारा, जो "इश्क का रोग" लगाओ.
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