खुद्दारो का बस अंदाज़ यहीं, रेतों को बेशक बूंदों की आश नहीं,
श्मशानों को लाशों की अरदास नहीं, पत्थरों के होते जज़्बातों नहीं,
ये तो बस हमारी शराफ़त हैं, जो कभी माफ़ी मांग लिया करते हैं;
वर्ना हमसे बेवजह माफ़ी मंगवा सके, इतनी औकात की भी औकात नहीं ।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag
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