तू वो पवित्र नदी है माँ, जो अपनी गोंद मे मुझे बिठाकर मेरे सारे पाप, सारी मलीनता, सारे आँसू खुद मे समाहित करके मुझे सुकून सा दे जाती है और खुद? खुद निडरता पूर्वक बहती रहती है.......।।
मां तेरी याद में आज मैंने मीठी मिश्री सी घोली है... हाथ मेरा बढ़ता गया कलम मेरी लिखती गई... मां तेरी याद में आज मैंने स्याही सी मिस्त्री घोली है... घर मेरा चलता गया बच्चे मेरे बढ़ते गए... मां तेरी याद में आज मैंने बातों की मिश्री सी घोली है... मां तेरे ख्वाबों और सीख से आज मैंने संस्कारों की मिश्री सी घोली है... मां तेरे ख्यालों में खो कर आज लगा कि तू कितनी भोली है...