ये कैसा सर्द सा खून मेरी रगों में बहता है
ज़हर सोखता है मगर, उफ्फ भी नहीं कहता है
मुझे कोई ग़म नहीं मेरे नशेमन के उजड़ने का
ग़म है कि मेरा मुल्क ही, गद्दार मुझे कहता है
कैसे महसूस करू "पागल", मैं अपने वजूद को
इक साये की तरह, मेरे हर 'पहलू' 'जुनैद' रहता है
अलवर से निकल जाउं, के भागलपुर बन जाउं
कोई तो हो ऐसी जगह, जहाँ फसाद नहीं रहता है
कैसी बेशर्म जान है ये, मर क्यों नहीं जाता जो
गलीज़त में जीता है, हर जलालत को सहता है
ईजाज़ अहमद "पागल"
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