जुल्फों का वो बार बार सवारना नज़रें झुका कर तेरा वो मुस्कुराना आँखों से वो सब कुछ कह जाना वक़्त बे वक़्त तेरा वो प्यारा सा गुस्सा हो जाना कॉलेज के उन शामों को मुझे देखकर तेरा वो खिल जाना मुझे खुश करने के लिए कुछ भी कर जाना रोना जरूरी हो तब भी मुझे हसाना उस प्यारी सी आवाज में मुझे बार बार पुकारना
ना कोई दोस्त है ना इश्क़ है और ना मुकद्दर बदल रहा है, बेरोज़गारी की धुप उमीद का छाता और बस वक्त चल रहा है, चलो सुकून है हलक सुख नहीं रहा चवन्नियों की प्यास से, मगर ये होसला ही है एक जो रोज़ थोड़ा-थोड़ा मर रहा है।