सोच में पड़ जाती हूं कभी कभी
कैसे तुम वो ही सोच लेते हो
जो मैं सोच रही हूं,
या मैं तुमसे कहना चाहती हूं
शब्द तो जैसे बेमानी हो जाते हैं,
प्रेम ही है ये,और कुछ नहीं,
जो जान लेते हो तुम
हर बात,मेरे मन की,
मेरे बिना बताए,
मेरे बिना जताए,
सच है,
प्रेम पंडित बना देता है...
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