आज फिर शब-ए-तन्हाई का आलम है आज फिर दर्द सा उठा है दिल में आज फिर आह निकली हैं लबो से आज फिर एक ख्वाब टूटा है आंखो में आज फिर तल्खी है मेरे लहज़े में आज फिर अधूरा चाँद है आसमां में आज फिर अश्क़ रूका है पलकों पर आज फिर वहीं जुदाई का मंज़र है मेरी आँखों में आज फिर शब-ए-तन्हाई का आलम है और तुम याद आ रहे हो।