हर खुशी है लोगो के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक़्त नही।
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
जिंदगी के लिए ही वक़्त नही।
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नही।
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
पर उन्हे दफनाने का भी वक़्त नही।
गैरो की क्या बात करे,
जब अपनो के लिए ही वक़्त नही।
आँखो में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नही।
दिल है ग़मो से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नही।
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नही।
पराये एहसासो की क्या कद्र करे,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नही।
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