प्रभाकर छिपा,
धुंध में, पयोधर
पायस सा इक
नन्हा सा टुकड़ा
घाम को भी
भटकन सा बिगड़ा
आवारा बना देता है
रोशनी भी तम की
संगति में अस्तित्व से
विमुख हो ही जाती है ना
पर रवि अपनी वास्तविक
विद्यमान गुण से
स..म...ता से सहन कर
ता..म..स को समर कर
ता..प...स को प्रकट कर
जग उजास कर देता है,
तुषार से भयभीत न होता
एक *शूरवीर*
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