रोज मर-मरकर बस थोड़ा-थोड़ा ही जिये जा रहे हैं
जिंदगी के हर मोड़ पर जीने की वजह तलाश रहे हैं,
ये किया तो क्या होगा, वो किया तो क्या न होगा
खुद के इन्हीं सवालों में खुद ही उलझते जा रहे हैं,
जिंदगी है कोई व्यापार नही जहाँ होता मोलभाव नहीं
फिर क्यों देखते हो हर बार फायदा और नुकसान वही,
पाने को एक छोटी सी खुशी हो कोई वजह जरूरी तो नहीं
हँस लिया अगर बेवजह ही तो किया कोई गुनाह तो नहीं,
वैसे तो गम की कोई कमी नहीं और परेशानियों की भी वजह तमाम है,
फिर भी जी लो एक बार खुलकर बेवजह, लगेगा न कोई इल्ज़ाम है।
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