अपनी हार का जश्न मैं मनाता कहाँ
गर मैं यहाँ नहीं आता तो जाता कहाँ
इस मैखाने के कर्ज़ बड़े है मुझपर
मैं बोतल को मुह न लगाता ये मेहर चुकाता कहाँ
मैं ठहरा एक मामूली सा जुगनु
खुद को ना जलाता तो आज़माता कहाँ
इतना करीब आ कर बिछड़ा है वो मुझसे
यहाँ बेवफाई न जताता तो निभाता कहाँ
खुद को मनाने की कोशिश मे हू कब से
अब ना बहलाता तो जिस्म दफनाता कहाँ
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