माँ बनाती थी, सुबह-सुबह रोटियाँ ,
पका-पका कर रख देती थी,
अखबार में छपे लीडरों के...
सर के ऊपर ....
फिर...
अचानक पड़ जाती थी, मेरी नज़र...
अखबार में बैठे लीडरों पर...
मैं फिर पूछती उनसे,
ए मेरे आज़ाद देश के लीडरो !!
स्वाद चखो मेरे माँ के हाथ की बनी हुई...
चाँद जैसी रोटियों का,
आनंद लो,
टपकती हुई छत के नीचे बनी हुई...
दाल का!!
चुप क्यो हो.... ?
मैं तो आपकी बख्शी हुई ,आजादी में से...
आपके लिए थाली परोसी है,
हाँ नेता जी !!
हम 'आजाद' देश के वासी...
आजाद बातें ही करतें हैं ।
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