कौन कहता है ,खुशियों में खुशबू नहीं होती!
शायद तुम्हारी ही रुह उनसे रुबरु नहीं होती!
बारिश की बूदें आज भी ,दिल को वैसे ही गुदगुदा जाती है!
फिर से जी ले आज वही खुशियाँ कानों में बुदबुदा जाती है!
बचपन की अठखेलियाँ में ,दोस्तों की टोलियों में खुशियाँ होती है!
कभी बचपन की शैतानी में तो ,कभी नादानी में खुशियाँ होती है!
आज भी बचपन की यादें, ह्रदय को खुशियों से भर जाती है!
याद दोस्तों की उदास बगियाँ में ,खुशियों के सुमन खिलाती है!
बुढापे के मुरझाये फुलों कि फुलवारी फिर महक जाती है!
जब बुढ़ापे में बीते जवानी की, मस्ती हमें याद आ जाती है!
भविष्य की चिंता को भुल के देखों, छोटी खुशियाँ भी जीवन महका जाती है!
बिसरे दिनों की खट्टी मिठी यादें ,मुरझाई हुई कलियाँ फिर से चहका जाती है!
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