उसने पूछा- "तो जाऊँ मैं?"
"हाँ जाओ", मैने कहा,
"सच में चला जाऊँ?", उसने पूछा,
"हाँ चले जाओ", मैंने कहा,
उसने पूछा, "वापिस ना आने के लिए?",
मैंने कहा,"हाँ हाँ कभी ना आने के लिए",
"मेरी क़सम?", उसने पूछा,
मैं ख़ामोश हो गई,
और वो मेरा हाथ थामकर वहीं बैठ गया,
'हाँ, प्रेम बचपन की मासूमियत के
झूठे डर पर भी यकीं करता है,
प्रेम बच्चे से कहीं अधिक मासूम होता है।'
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