लखन
राम अस्तित्व थे, थी लखन उनकी परछाई
जीवित रहने और न रहने की वजह रघुराई
उर्मिल का त्याग प्यार वो भाई का हो लिया
लखन जो एक जीवन में सदियों जी लिया
जीवन सार राम का, रामचरित में पढ़ लिया
विसरा दिया लखन, जो भाई का हो लिया
चोट राम की तो लखन ने ही पहले खाई थी
भ्रात- प्रेम में लखन ने ऐसी प्रीत निभाई थी
- नीरज राजपूत
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