QUOTES ON #LABOUR

#labour quotes

Trending | Latest
9 MAY 2020 AT 14:46

वो पैदल चलते जा रहा है।
वो अपने गांव जा रहा है।
भूख प्यास उसके संगी हैं।
आज सियासत नंगी है।
उसका गांव में एक मकान है।
ये कैसा हिंदुस्तान है?
ये कैसा हिंदुस्तान है?

श्रमिक वर्ग का ठप्पा लेकर,
सबको अपने संग इकट्ठा लेकर।
उसके नीचे धरती, उपर आसमान है
ये कैसा हिंदुस्तान है?
ये कैसा हिंदुस्तान है?
Continued in the caption👇

-


16 JUN 2017 AT 12:32

कातिल कातिल चिल्लाती उन नन्ही नन्ही आँखों ने,
बेच दिए सपने अपने थे चंद अन्न के दानों में,
रोती रोती चिल्लाती वो कोमल मन की आवाजें,
बदल रही हैं क्रोध में उसको ये समाज की दीवारें,
वो रुमाल से अपने हाथों से जब खाना खाता है,
आँसू उसके पच जाते हैं जब वो नींद में जाता है,
हर सुबह नई उम्मीद लिए वो फिर से काम पे जाता है,
एक मासूम सा बच्चा देखो कब वयस्क बन जाता है।

-


13 MAY 2020 AT 19:07

मजदूर है मजबूर ना कर
जन्मभूमि से दूर ना कर

-


16 MAY 2020 AT 19:49

हाँ, मजदूर हूँ मैं ।।
(Read the caption)

-


1 MAY 2020 AT 17:41

Yeh Majdoor nahi,
Majboor hai!





-


8 MAY 2020 AT 10:14

थकन का बिछौना करके, वह कहीं सांसे लेता है छांव में,
कल तक तो छाले ज़ुबां पर थे,अब छाले पड़ गए पांव में !!


تھکن کا بچھانا کرکے, وہ کہیں سانسیں لیتا ہے چھاؤں میں..
کل تک تو چھالے زباں پہ تھے, اب چھالے پڑ گئے پاؤں میں !!

-


9 MAY 2020 AT 19:28

तुम्हें वहम है के, तुम्हारी मज़बूरीयों को अख़बार लिखेगा,
हो जाओ शिकार किसी हादसे के, ये तुम्हें बीमार लिखेगा !!


تمہیں وہم ہے کے, تمہاری مجبوریوں کو اخبار لکھے گا..
ہو جاؤ شکار کسی حادثے کے, یہ تمہیں بیمار لکھے گا !!

-


1 MAY 2020 AT 15:12

कुछ इस तरह उसकी रोजी-रोटी 'छीन' ली गई,
मजदूर की जगह जब नई 'मशीन' ली गई ।

-


15 MAY 2020 AT 8:36

फ़क़त अनाज पेट में, एक मुट्ठी चाहता हूं
मौत लाज़मी है, तो अपनी मिट्टी चाहता हूं,

यह शहर की रौशनी अमीरों को मुबारक हो
अब मैं अपना गांव, अपनी बस्ती चाहता हूं,

उम्मीद नहीं मुझे कोई, दुनिया के तैराको से
हौसले के भंवर में ख़ुद की कश्ती चाहता हूं,

देखना अंधेरा ख़ुद ले कर आएगा मेरा दिया
सर नंगा सही दिये के लिए पगड़ी चाहता हूं,

सड़क रौंदती है मुझे, ख़फ़ा है रेल भी मुझसे
पैदल चल लूंगा पर मैं अपनी पटरी चाहता हूं,

मैंने सुना है दिल्ली से लफ्ज़ राहत निकला है
गर हुआ है कुछ ऐलान तो मैं जल्दी चाहता हूं,

सब जुमलों से भरा काग़ज़ का टुकड़ा ना हो
असल ये ज़मीं पर उतरे, मैं असली चाहता हूं !!

-


13 MAY 2020 AT 19:35

उतर गएं अगर मज़दूर शहर की सीढ़ियों से
फिर नहीं निकल पाएगा धुआं चिमनियों से,

उन्हीं के खूं पसीने से मिल के बना है मुल्क
खुलता है हर पिटारा मज़दूर की कुंजियों से,

इनके पैरों में छाले, पेट में अंगारे हैं भूख के
इन्हें फ़र्क नहीं पड़ता ऐलान की चिट्ठियों से,

ये जो ऊंचे ऊंचे ओहदो की सब तख्तियां हैं
यह सब गिर सकती है इनकी सिसकियों से,

बीच भंवर में लाचार फंसे हैं वो बेबस बेचारे
है कोई मल्लाह तो निकाले उन्हें कश्तियों से,

कल कौड़ी का था आज लाखों में तौला गया
शोक भी जताया गया, ट्वीटर की बस्तियों से,

उन्हें सलामत रख मौला ये दुआ है आमिर की
जिसने बनाया है हिन्दूस्तान,अपनी हड्डियों से !!

-