वक़्त गुजरता है तो फिर यादें ज़िंदा क्यू है
किवाड़े बंद रख्खी थीं फिर बार बार ये झाकता क्यू है
अच्छी बातें मेरी सहेज थाम बैठे रहे हम
तस्वीर बनादि थी वो तो फिर ये मंज़र बदलता क्यू है
रिश्ते बदलते रहते है अक्सर लोग बदल जाते हैं
मना किया मैंने फिर ये जस्बात ढूंढ लाता क्यू है
गलती थी ठोकर खाई संभलते संभलते संभल गए
सिख मिली इतनी फिर भी ये मुझे मनाता क्यू है
निकलना था गुबार दिलका कलम से मेरी निकला बोहोत
बयान कर के इतना दर्द ये फिर इसे जताता क्यू है
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