आओ, बैठो, किसी रोज़ फुरसत से पहलू में,
और बताओ मेरी बातों का कोई ज़वाब है क्या?
मैं जिस राह सफर में हूँ, अंधेरा है बहुत,
तुम्हारे पास कोई छोटा सा महताब है क्या ?
मेरे किस्से, गज़ल, किताबें, सब आप पे फ़ना हैं,
आप हुस्नवाली हैं, या कोई नवाब हैं क्या?
तुम्हें पसंद हैं, पर चुभती हैं ज़माने को मेरी बातें,
तुम्हीं बताओ ये ग़ज़ल हैं, या तेज़ाब हैं क्या?
इक रोज़ देखा फ़लक पे तुम लड़ रही थी चाँद से,
ये सच है बताओ, या कोई ख्वाब है क्या?
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