अब शराफतों का ज़माना कहाँ,हर एक के पास दो चेहरे हैं।
गद्दारों की हिफाज़तो में, गद्दारों के ही पहरे हैं।।
कुर्सी बिकी अखबार बिका, साथ वर्दी ने भी छोड़ दिया।
हैं काम जिनके राज़ खोलना, राज़ उन्हीं के बहुत गहरे हैं।।
लिबास वतन का पहनकर वो, वतन से ही दग़ा कर बैठे।
और सियासत की दुनिया में तो, हर नेता गुंगे-बहरे हैं।।
--N@D€£M K #@N
-