देखूँ जब जब तेरी आँखों में, ख़ुद को गिरफ्तार देखता हूँ
कभी हुस्न, कभी शोखी जाने कितने किरदार देखता हूँ!
इक तेरे बाद सारे शौक मुझे, बे-ग़ैरत, बे-जरूरत लगते,
इक तुझे देखा जब से, तब से रोज मैं लगातार देखता हूँ!
आईना जब जब देखा अपनी उम्र देखी मैंने बढ़ते हुए,
तुम दिखी वैसी ही, बंद आँखों से भी रूख़सार देखता हूँ!
आशिक हूँ तेरी रूह का, तेरे हुस्न का मैं इकलौता हकदार,
मय की तिश्नगी नहीं, ख़ुद को तेरा तलबगार देखता हूँ!
तेरी दीद से हैं सारे ख़्वाब, तुझसे बेशकीमती नज़ारा है,
ग़म की जब जब दिखे परछाई, ख़ुद को खरीददार देखता हूँ!
तोहमत लगाते है कितने, कितने झूठ बोल जाते हैं 'कुमार'
चले जब जब मोहब्बत की बात, तुझ सा ना वफ़ादार देखता हूँ!
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