क्या रह गई आज औकात तुम्हारी,
अब जब घर के अंदर गुजर रही है ज़िन्दगी सारी।
तुमने बेजुबान जानवरों को कीड़ा समझ उनसे आजादी छीन रखी थी,
आज बेजुबान कीड़ा(कोरोना) तुम्हें जानवरों सा कैदी बना रखा है।
आज महसूस कर रहे होगे ना कि कैद में रहकर जानवरों जैसी ज़िन्दगी हो गई है
कल जानवर क़ैदी था आज इंसान क़ैदी है।
तुमको कुदरत ने तो बहुत कुछ दिया है,
कभी खुद से पूंछा है तुमने कुदरत को क्या दिया है?
पीछे मुड़कर देखो तुमने कुदरत के साथ कितनी ज्यादती की है,
उसी के आँचल में रहकर उसी की आबरू छीन ली है।
पतंग, विमान उड़ाकर उनसे उनका आसमान छीन लिया,
पानी मे रसायन मिलाकर उसने प्यास छीन ली।
पेड़ काटकर चिड़िया का घोसला मिटा दिया,
आज आराम से सोने के लिए उसी का पलंग बना लिया
तुम अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए हवा में ज़हर घोल रहे हो,
पर ये क्यों भूल रहे कि तुम अपनी मौत के लिए दरवाजा खोल रहे हो।
याद रखना कर्जदार हो तुम कुदरत के,
ना चुका पाओगे मरते दम तक कर्ज़ उसका।
खिलवाड़ तो बहुत किये है कुदरत के साथ तुमने बहुत बारी,
अब आ गया है उसकी कीमत चुकाने की बारी।
खुदा ने तो कुदरत को सभी के लिए बनाया है ,
लेकिन इंसान ने इसे बस खुद का ही बना लिया है
इंसान का हक है कुदरत पर यह गलतफहमी छोड़ दो,
जानवरों को भी उनका हक पा लेने दो।
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